प्राचीन भारतीय दर्शन कहता है कि यह पूरा ब्रह्मांड दो मूल तत्वों पर आधारित है

  • शिव (पूर्ण शांति और स्थिरता का प्रतीक)
  • शक्ति (गति और ऊर्जा का प्रतीक)

इन दोनों के मिलन से ही सृष्टि की रचना होती है।
बिना शिव के शक्ति केवल अराजक ऊर्जा है, और बिना शक्ति के शिव केवल मौन।
दोनों का संगम ही सम्पूर्ण जीवन और ब्रह्मांड की नींव है।

शिव – मौन और स्थिरता का स्वरूप

भगवान शिव को योगियों का देव कहा गया है।
वे हिमालय में ध्यानमग्न रहते हैं, मौन और निर्विकार।
उनका स्वरूप हमें सिखाता है:

  • मन को स्थिर रखना
  • इच्छाओं से परे होकर आत्मा को पहचानना
  • भीतर की शांति को जागृत करना

शिव हमें बताते हैं कि बिना आंतरिक शांति के, बाहरी उपलब्धियाँ अधूरी हैं।

शक्ति – गति और सृजन का स्वरूप

माँ शक्ति, जिन्हें माँ ललिता त्रिपुर सुन्दरी, दुर्गा, पार्वती आदि रूपों में पूजा जाता है, सृजन और गति की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे ही वह ऊर्जा हैं जिनसे जीवन चलता है।

  • शक्ति से ही प्रकृति में ऋतुएँ बदलती हैं।
  • शक्ति से ही जीव जन्म लेते हैं।
  • शक्ति से ही हर पल गति और परिवर्तन संभव होता है।

शक्ति हमें सिखाती है कि जीवन निरंतर गतिमान है और ऊर्जा ही अस्तित्व का आधार है।

शिव और शक्ति का मिलन – सृष्टि का रहस्य

भारतीय दर्शन में शिव और शक्ति को अलग नहीं माना गया। इन्हें अर्धनारीश्वर रूप में भी दर्शाया गया है – आधा शरीर शिव का और आधा शक्ति का। यह प्रतीक है:

  • स्थिरता + गति
  • चेतना + ऊर्जा
  • पुरुष + स्त्री
  • ध्यान + क्रिया

जब ये दोनों एक होते हैं तभी सृष्टि का संतुलन बना रहता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से संदेशआध्यात्मिक दृष्टि से संदेश

  • बिना शिव (चेतना) के शक्ति (ऊर्जा) अंधाधुंध और असंतुलित हो जाती है।
  • बिना शक्ति के शिव मात्र निष्क्रिय और मौन रहते हैं।

इसलिए हमें अपने जीवन में ध्यान और क्रिया, शांति और ऊर्जा का संतुलन बनाए रखना चाहिए।

आधुनिक जीवन में इसका महत्व

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में यह संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है:

  • केवल काम और दौड़-भाग (शक्ति) से थकान और तनाव आता है।
  • केवल शांति और ध्यान (शिव) से प्रगति रुक जाती है।

जब हम दोनों को संतुलित करते हैं तभी जीवन सफल और सुखद बनता है।

शास्त्रों से प्रमाण

देवी भागवत कहता है:
“शिव बिना शक्ति शव हैं, और शक्ति बिना शिव दिशाहीन है।”
तंत्र शास्त्र कहता है:
“शिव ही बीज हैं और शक्ति ही भूमि – दोनों के मिलन से सृष्टि अंकुरित होती है।”

निष्कर्ष
शिव और शक्ति केवल देव-देवी नहीं, बल्कि हमारे जीवन के दो अनिवार्य पहलू हैं।
शिव हमें मौन, ध्यान और स्थिरता सिखाते हैं।
शक्ति हमें ऊर्जा, क्रिया और सृजन का महत्व बताती हैं।
दोनों का संगम ही जीवन को संतुलित और पूर्ण बनाता है।
जहाँ शिव और शक्ति का संगम है, वहीं सृष्टि है, वहीं आनंद है, वहीं सम्पूर्णता है।

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